प्रत्येक पल हूँ सोचता मैं,
क्योंकर आया इस धरा पर ।
उद्देश्य क्या है और क्यों है !
कब तलक ये पूर्ण होगा ।।
जीवन की ये पतवार किसकी
हस्तरेखाओं से बंधी है ।
है क्यों इसे वो खेवता,
क्योंकर है इसको नष्ट करता !!
हूँ ढूंढता मैं उस नाविक को,
कुछ सवाल है पूछने ।
ग़र वो मिले, मुझसे मिलाना
मैं चिर-प्रतीक्षित हूँ खड़ा !!
~Harsh Nath Jha