मौन रहूँ या फिर रो लूँ,
आकण्ठ शोक है भर आया !
कीमत इतनी है गिर चुकी जीवन की,
क्षण में समाप्त है हो जाती !!
शुशांत ! तुमने है ये क्या किया,
क्यों हिम्मत हार गए जग से !
हाँ , पीड़ा थी माना मैंने
पर तुम तो जीवट थे !!
समस्याएं हो सकती हैं विकट,
पर हमसे जीत नहीं सकती !
कर सकते थे तुम पार उसे,
फिर भी अशांत हो विदा हुए !!
खुद प्रेरणा के स्रोत बन,
आप ही विस्मृत हुए !
परलोक को प्रस्थान कर,
विस्मित किया संसार को !!
याद आएंगी, सोनचिरैया में
तुम्हारी दरियादिली !
वो छिछोड़े का जुझारूपन,
ओ व्योमकेश का सत्यान्वेषण !!
~Harsh Nath Jha