दीन प्रजा, संतप्त हृदय से
जब आवाज लगाती है !
भाव विह्वल हो, जननायक
तब देव स्वरूप उभरते हैं !!
हर लेने को कष्ट सभी,
जब युवा जोश दिखाती है !
संकट का अटल पर्वत भी ,
विवश हो अपना शीश झुकाता है !!
हो दिशाहीन, प्रपंच में फँसकर
कब तक आपस में लड़ोगे !
बन कठपुतली, धूर्तों की
कब तक समय गँवाओगे !!
हे! शक्तिपुंज, तुम नेत्र खोल
अपना सामर्थ्य दिखाओ !
नायक बन, हित साधो राष्ट्र की
बहुरूपियों को सबक सिखाओ !!
कुछ छुपा नहीं, तुमसे है भेद
बस जिज्ञासा दिखलाओ !
इन दुष्ट-पापियों के चंगुल से,
अपना देश बचाओ !!
~Harsh Nath Jha