Category: Pehli Barish Shayari
जिस तरह वसंत में कोयल का मधुर राग बढ़ा देता है विरहणी के मन में पिया मिलन की आस उसी प्रेम अगन को जगा रहा है आज तेरा प्यार …
Chehre pe mere zulf ko bikhraao kisi din, Barsaat ka mausam hai chale aao kisi din.
इस भीगे भीगे मौसम में थी आस तुम्हारे आने की, तुमको अगर फुर्सत ही नहीं तो आग लगे बरसातों को।
ख़ुद को इतना भी न बचाया कर, बारिशें हुआ करे तो भीग जाया कर।
कल रात मैंने सारे ग़म आसमान को सुना दिए, आज मैं चुप हूँ और आसमान बरस रहा है।
जब भी होगी पहली बारिश, तुमको सामने पायेंगे, वो बूंदों से भरा चेहरा तुम्हारा हम देख तो पायेंगे।
अब भी बरसात की रातों में बदन टूटता है, जाग उठती हैं अजब ख़्वाहिशें अंगड़ाईयों की।
तपिश और बढ़ गई इन चंद बूंदों के बाद, काले सियाह बादलो ने भी बस यूँ ही बहलाया मुझे।