आंधियों में दिये हम जलाते रहे,
ज़र्फ़ को इस तरह आज़माते रहे!
दाद मिलती रही मेरे हर शेर पे,
दर्द अपने उन्हें हम सुनाते रहे!
ज़िन्दगी इक कहानी अगर है तो हम,
झूठा किरदार इसमें निभाते रहे!
ऐ मुहब्बत यही. तेरा दस्तूर है,
ग़म भी तेरे गले से लगाते रहे!
शेर. कितने ही मंसूब ग़म को किये,
ऐ ग़ज़ल तेरा सदका लुटाते रहे!
जब भी तन्हा हुये मशगला था यही,
ग़म के किस्से ख़ुदी को सुनाते रहे!
ये भी करना पड़ा ज़िन्दगी में ‘शफी’,
दर्द पीते रहे मुस्कुराते…… रहे!
शफ़ी ताजदार