Motivational Poem In Hindi For Success, Life & Love

Motivational Poem In Hindi For Success, Life & Love

[sc name=”download” url=”https://www.lovesove.com/wp-content/uploads/2021/09/Motivational-Poem-For-Child-In-Hindi-Lovesove.jpg”]

लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चढ़ती है
चढ़ती दीवारों पर सौ बार फ़िसलती है
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है
मेहनत उसकी बेकार नहीं हर बार होती
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती
डुबकियाँ सिंधु में गोताखोर लगाता है
जा-जा कर खाली हाथ लौट कर आता है
मिलते न सहज ही मोती गहरे पानी में
बढ़ता दूना विश्वास इसी हैरानी में
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती
असफ़लता एक चुनौती है, स्वीकार करो
क्या कमी रह गई देखो और सुधार करो
जब तक न सफल हो, नींद-चैन को त्यागो तुम
संघर्षों का मैदान छोड़ मत भागो तुम
कुछ किये बिना ही जय-जयकार नहीं होती
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती
कवि – सोहन लाल द्विवेदी

[sc name=”share” id=”153296″ text=”लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चढ़ती है चढ़ती दीवारों पर सौ बार फ़िसलती है मन का विश्वास रगों में साहस भरता है चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है मेहनत उसकी बेकार नहीं हर बार होती कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती डुबकियाँ सिंधु में गोताखोर लगाता है जा-जा कर खाली हाथ लौट कर आता है मिलते न सहज ही मोती गहरे पानी में बढ़ता दूना विश्वास इसी हैरानी में मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती असफ़लता एक चुनौती है, स्वीकार करो क्या कमी रह गई देखो और सुधार करो जब तक न सफल हो, नींद-चैन को त्यागो तुम संघर्षों का मैदान छोड़ मत भागो तुम कुछ किये बिना ही जय-जयकार नहीं होती कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती कवि – सोहन लाल द्विवेदी”]


[sc name=”download” url=”https://www.lovesove.com/wp-content/uploads/2021/09/Motivational-Poem-Lines-Lovesove.jpg”]

धरा हिला, गगन गुंजा
नदी बहा, पवन चला
विजय तेरी, विजय तेरी
ज्योति सी जल, जला
भुजा-भुजा, फड़क-फड़क
रक्त में धड़क-धड़क
धनुष उठा, प्रहार कर
तू सबसे पहला वार कर
अग्नि सी धधक-धधक
हिरन सी सजग-सजग
सिंह सी दहाड़ कर
शंख सी पुकार कर
रुके न तू, थके न तू
झुके न तू, थमे न तू
सदा चले, थके न तू
रुके न तू, झुके न तू
कवि – स्व. हरिवंश राय बच्चन

[sc name=”share” id=”153297″ text=”धरा हिला, गगन गुंजा नदी बहा, पवन चला विजय तेरी, विजय तेरी ज्योति सी जल, जला भुजा-भुजा, फड़क-फड़क रक्त में धड़क-धड़क धनुष उठा, प्रहार कर तू सबसे पहला वार कर अग्नि सी धधक-धधक हिरन सी सजग-सजग सिंह सी दहाड़ कर शंख सी पुकार कर रुके न तू, थके न तू झुके न तू, थमे न तू सदा चले, थके न तू रुके न तू, झुके न तू कवि – स्व. हरिवंश राय बच्चन”]


[sc name=”download” url=”https://www.lovesove.com/wp-content/uploads/2021/09/Motivational-Poem-On-Success-In-Hindi-Lovesove.jpg”]

कोशिश कर, हल निकलेगा
आज नहीं तो, कल निकलेगा.
अर्जुन के तीर सा सध
मरूस्थल से भी जल निकलेगा.
मेहनत कर, पौधों को पानी दे
बंजर जमीन से भी फल निकलेगा.
ताकत जुटा, हिम्मत को आग दे
फ़ौलाद का भी बल निकलेगा
जिंदा रख, दिल में उम्मीदों को
गरल के समंदर से भी गंगाजल निकलेगा.
कोशिशें जारी रख कुछ कर गुजरने की
जो है आज थमा-थमा सा, चल निकलेगा
कवि – आनंद परम

[sc name=”share” id=”153299″ text=”कोशिश कर, हल निकलेगा आज नहीं तो, कल निकलेगा. अर्जुन के तीर सा सध मरूस्थल से भी जल निकलेगा. मेहनत कर, पौधों को पानी दे बंजर जमीन से भी फल निकलेगा. ताकत जुटा, हिम्मत को आग दे फ़ौलाद का भी बल निकलेगा जिंदा रख, दिल में उम्मीदों को गरल के समंदर से भी गंगाजल निकलेगा. कोशिशें जारी रख कुछ कर गुजरने की जो है आज थमा-थमा सा, चल निकलेगा कवि – आनंद परम”]

For Daily Updates Follow Us On Facebook


[sc name=”download” url=”https://www.lovesove.com/wp-content/uploads/2021/09/Motivational-Poems-To-Start-The-Day-Lovesove.jpg”]

न एक हाथ शस्त्र हो
न हाथ एक अस्त्र हो
न अन्न वीर वस्त्र हो
हटो नहीं, डरो नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो
रहे समक्ष हिम-शिखर
तुम्हारा प्रण उठे निखर
भले ही जाए जन बिखर
रुको नहीं, झुको नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो
घटा घिरी अटूट हो
अधर में कालकूट हो
वही सुधा का घूंट हो
जिये चलो, मरे चलो, बढ़े चलो, बढ़े चलो
गगन उगलता आग हो
छिड़ा मरण का राग हूँ
लहू का अपने फाग हो
अड़ो वहीं, गड़ो वहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो
चलो नई मिसाल हो
जलो नई मशाल हो
झुको नहीं, रुको नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो
अशेष रक्त तोल दो
स्वतंत्रता का मोल दो
कड़ी युगों की खोल दो
डरो नहीं, मरो नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो
कवि – सोहनलाल द्विवेदी

[sc name=”share” id=”153300″ text=”न एक हाथ शस्त्र हो न हाथ एक अस्त्र हो न अन्न वीर वस्त्र हो हटो नहीं, डरो नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो रहे समक्ष हिम-शिखर तुम्हारा प्रण उठे निखर भले ही जाए जन बिखर रुको नहीं, झुको नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो घटा घिरी अटूट हो अधर में कालकूट हो वही सुधा का घूंट हो जिये चलो, मरे चलो, बढ़े चलो, बढ़े चलो गगन उगलता आग हो छिड़ा मरण का राग हूँ लहू का अपने फाग हो अड़ो वहीं, गड़ो वहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो चलो नई मिसाल हो जलो नई मशाल हो झुको नहीं, रुको नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो अशेष रक्त तोल दो स्वतंत्रता का मोल दो कड़ी युगों की खोल दो डरो नहीं, मरो नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो कवि – सोहनलाल द्विवेदी”]


[sc name=”download” url=”https://www.lovesove.com/wp-content/uploads/2021/09/Motivational-Poem-To-Keep-Going-Lovesove.jpg”]

तुम तो हारे नहीं तुम्हारा मन क्यों हारा है?
कहते हैं ये शूल चरण में बिंधकर हम आए
किंतु चुभे अब कैसे जब सब दंशन टूट गए
कहते हैं पाषाण रक्त के धब्बे हैं हम पर
छाले पर धोएं कैसे जब पीछे छूट गए
यात्री का अनुसरण करें
इसका न सहारा है!
तुम्हारा मन क्यों हारा है?
इसने पहिन वसंती चोला कब मधुबन देखा?
लिपटा पग से मेघ न बिजली बन पाई पायल
इसने नहीं निदाघ चाँदनी का जाना अंतर
ठहरी चितवन लक्ष्यबद्ध, गति थी केवल चंचल!
पहुँच गए हो जहाँ विजय ने
तुम्हें पुकारा है!
तुम्हारा मन क्यों हारा है?
कवित्री – स्व. महादेवी वर्मा

[sc name=”share” id=”153301″ text=”तुम तो हारे नहीं तुम्हारा मन क्यों हारा है? कहते हैं ये शूल चरण में बिंधकर हम आए किंतु चुभे अब कैसे जब सब दंशन टूट गए कहते हैं पाषाण रक्त के धब्बे हैं हम पर छाले पर धोएं कैसे जब पीछे छूट गए यात्री का अनुसरण करें इसका न सहारा है! तुम्हारा मन क्यों हारा है? इसने पहिन वसंती चोला कब मधुबन देखा? लिपटा पग से मेघ न बिजली बन पाई पायल इसने नहीं निदाघ चाँदनी का जाना अंतर ठहरी चितवन लक्ष्यबद्ध, गति थी केवल चंचल! पहुँच गए हो जहाँ विजय ने तुम्हें पुकारा है! तुम्हारा मन क्यों हारा है? कवित्री – स्व. महादेवी वर्मा”]


[sc name=”download” url=”https://www.lovesove.com/wp-content/uploads/2021/09/Motivational-Shayari-Poem-Lovesove.jpg”]

हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए
कवि – दुष्यंत कुमार

[sc name=”share” id=”153302″ text=”हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए कवि – दुष्यंत कुमार”]