मोहभंग नहीं, उच्छ्वास है ये जलती गंगा की प्यास है ये !

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मोहभंग नहीं, उच्छ्वास है ये
जलती गंगा की प्यास है ये !
रौद्र रूप है प्रकृति का,
पापी मनुष्यों का अंत है ये !!

उबल रहा है, अथाह समुद्र
ओ कड़क रहा है अनंत गगन !
विष घुलने लगी है हवाओं में,
धरती फटने को है आतुर !!

क्यों हित का ध्यान करें तेरा,
क्या तुमने प्रेम किया उससे !
अपनी बेरुखी दिखा सबने,
आमंत्रण दिया विनाश को है !
~Harsh Nath Jha

[sc name=”share” id=”112666″ text=”मोहभंग नहीं, उच्छ्वास है ये जलती गंगा की प्यास है ये ! रौद्र रूप है प्रकृति का, पापी मनुष्यों का अंत है ये !! उबल रहा है, अथाह समुद्र ओ कड़क रहा है अनंत गगन ! विष घुलने लगी है हवाओं में, धरती फटने को है आतुर !! क्यों हित का ध्यान करें तेरा, क्या तुमने प्रेम किया उससे ! अपनी बेरुखी दिखा सबने, आमंत्रण दिया विनाश को है !”]