मौन रहूँ या फिर रो लूँ, आकण्ठ शोक है भर आया

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मौन रहूँ या फिर रो लूँ,
आकण्ठ शोक है भर आया !
कीमत इतनी है गिर चुकी जीवन की,
क्षण में समाप्त है हो जाती !!

शुशांत ! तुमने है ये क्या किया,
क्यों हिम्मत हार गए जग से !
हाँ , पीड़ा थी माना मैंने
पर तुम तो जीवट थे !!

समस्याएं हो सकती हैं विकट,
पर हमसे जीत नहीं सकती !
कर सकते थे तुम पार उसे,
फिर भी अशांत हो विदा हुए !!

खुद प्रेरणा के स्रोत बन,
आप ही विस्मृत हुए !
परलोक को प्रस्थान कर,
विस्मित किया संसार को !!

याद आएंगी, सोनचिरैया में
तुम्हारी दरियादिली !
वो छिछोड़े का जुझारूपन,
ओ व्योमकेश का सत्यान्वेषण !!
~Harsh Nath Jha

[sc name=”share” id=”112664″ text=”मौन रहूँ या फिर रो लूँ, आकण्ठ शोक है भर आया ! कीमत इतनी है गिर चुकी जीवन की, क्षण में समाप्त है हो जाती !! शुशांत ! तुमने है ये क्या किया, क्यों हिम्मत हार गए जग से ! हाँ , पीड़ा थी माना मैंने पर तुम तो जीवट थे !! समस्याएं हो सकती हैं विकट, पर हमसे जीत नहीं सकती ! कर सकते थे तुम पार उसे, फिर भी अशांत हो विदा हुए !! खुद प्रेरणा के स्रोत बन, आप ही विस्मृत हुए ! परलोक को प्रस्थान कर, विस्मित किया संसार को !! याद आएंगी, सोनचिरैया में  तुम्हारी दरियादिली ! वो छिछोड़े का जुझारूपन, ओ व्योमकेश का सत्यान्वेषण !!”]