मौत से ताउम्र यूँ भी मशवरा करते रहे

मौत से ताउम्र यूँ भी मशवरा करते रहे,
ज़िन्दगी हारे न बस ये ही दुआ करते रहे.

इस तरह से इश्क़ में महबूब से रिश्ता रखा,
दे रहा था वो मुआफ़ी हम ख़ता करते रहे.

मयक़दे ये पूछते ही रह गए आख़िर तलक़,
कौनसा आख़िर बताओ हम नशा करते रहे.

सूखे पत्तों की तरह जलते रहे बारिश में हम,
आग थी बेचैन लेकिन हम हवा करते रहे.

ढूँढता हममें रहा वो हम कहाँ उसमे रहे,
वो कहाँ हममें छिपा है हम पता करते रहे.

बेख़ुदी हम पे भी यारो इस क़दर छाई रही,
या ख़ुदा हम या ख़ुदा बस या ख़ुदा करते रहे.

इश्क़ में होकर जुदा मरने की ज़िद को छोड़ कर,
हम न जाने किस जनम का हक अदा करते रहे .

-सुरेन्द्र चतुर्वेदी