बूँद ओस की पर्ण अंक में छिपी हुयी थी

बूँद ओस की पर्ण अंक में छिपी हुयी थी,
प्राची प्रदेश में सौम्य लालिमा बिछी हुयी थी |
प्रकृति सुंदरी अरुण अधर आभा बिखेरती,
अधर कान्ति से नीली चुन्दरिया रंगी हुयी थी ||

आभा आती आर्द्र मुकुल से करे ठिठोली,
पुलकित कलियाँ आँख मिचौली खेल रही थी |
दूर क्षितिज पर व्योम ह्रदय में आग लगी थी,
या अंतर में दुल्हन घूँघट खोल रही थी ||

रुक रुक आती मलय सुगंध लुभावन थी ,
सुन्दरता कपाट मानस के खोल रही थी |
बूंदों पर से ज्योति प्रकीर्णित हो जाती थी,
या रजनी थी गयी तारिका रुकीं हुयी थी ||

सुमन पुंज को शलभ प्रेम के गीत सुनाता,
आनंदित हो डाल विटप की झूम रही थी |
माँ जैसे नन्हे शावक का चुम्बन करती,
कलियों को इठलाती तितली चूम रही थी |