कह दो जो दिल में रखे बैठे हो..
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कह दो जो दिल में रखे बैठे हो..
कुछ यादों को, कुछ एतराज़ों को..
कुछ गुस्से को, कुछ प्यार को, तो कुछ अनकहे एहसास को..
क्यूँ दबाये बैठे हो..
अब कह भी दो, जो दिल में रखे बैठे हो..
ये जिंदगी कुछ ऐसी ही है साहिब..
बहुत निकल गयी, कुछ और निकल जायेगी..
अभी भी वक़्त है..
ये जो दूसरा मौका दे रही है,
इसे हाथ से अब ना जाने दो..
कह दो..निकाल दो..
वो सब दुख-पीड़ा, गिले-शिकवे,
जो अरसों से दिल में दफ़्न करके उसे कब्रिस्तान सा बना बैठे हो..
और खोल दो..
कोने में रखा वो प्यार का पिटारा..
फिर देखो कैसे गुलशन हो जायेगा,
ये कब्रिस्तान तुम्हारा..