खुश रहना बहुत कठिन तो नहीं…
एक संत से एक युवक ने पूछा:- “गुरुदेव, हमेशा खुश रहने का नुस्खा अगर हो तो दीजिए।”
संत बोले:- “बिल्कुल है, आज तुमको वह राज बताता हूँ।”
संत उस युवक को अपने साथ सैर को ले चले, अच्छी बातें करते रहे, युवक बड़ा आनंदित था।
एक स्थान पर ठहर कर संत ने उस युवक को एक बड़ा पत्थर देकर कहा:- “इसे उठाए साथ चलो।”
पत्थर को उठाकर वह युवक संत के साथ-साथ चलने लगा।
कुछ समय तक तो आराम से चला लेकिन थोड़ी देर में हाथ में दर्द होने लगा, पर दर्द सहन करता चुपचाप चलता रहा।
संत पहले की तरह मधुर उपदेश देते चल रहे थे पर युवक का धैर्य जवाब दे गया।
उस युवक ने कहा:- “गुरूजी आपके प्रवचन मुझे प्रिय नहीं लग रहे अब, मेरा हाथ दर्द से फटा जा रहा है।”
पत्थर रखने का संकेत मिला तो उस युवक ने पत्थर को फेंका और आनंद में भरकर गहरी साँसे लेने लगा।
संत ने कहा:- “यही है खुश रहने का राज़, मेरे प्रवचन तुम्हें तभी आनंदित करते रहे जब तुम बोझ से मुक्त थे, परंतु पत्थर के बोझ ने उस आनंद को छीन लिया।
जैसे पत्थर को ज़्यादा देर उठाये रखेंगे तो दर्द बढ़ता जायेगा उसी तरह हम दुखों या किसी की कही कड़वी बात के बोझ को जितनी देर तक उठाये रखेंगे उतना ही दुःख होगा।
अगर खुश रहना चाहते हो तो दु:ख रुपी पत्थर को जल्दी से जल्दी नीचे रखना सीख लो और हो सके तो उसे उठाओ ही नहीं।